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गुरु चांडाल दोष और उपाय

जन्म पत्रिका मे गुरु और राहु एक साथ एक ही राशि में स्थित हो तब गुरु चांडाल योग बनता है।
गुरु ज्ञान के कारक हैं ,वहीं राहु अज्ञानता का कारक है
गुरु सकरात्मक ऊर्जा है ,वहीं राहु नकारात्मक ऊर्जा,  दोनों विपरीत ऊर्जा है जो एक साथ स्थित होने से गुरु की सकरात्मक ऊर्जा कम होने लगती है और राहु की नकारात्मक ऊर्जा बढ़ जाती है । राहु गुरु के साथ होने से बलवान हो जाता है और जातक द्विस्वभाव का हो जाता है। 
गुरु चांडाल योग के जातक स्वभाव से बुद्धिमान,स्वार्थी और अत्यंत चतुर  प्रकृति के होते हैं। इन जातकों मे धैर्य की कमी होती है। ये जातक कभी संतुष्ट नहीं होते इनकी इच्छा अनंत होती है। ये जातक जुगाड़ू प्रकृति के होते हैं। 
प्रथम भाव - मे गुरु चंडाल योग होने से जातक चालाकी से काम निकालने वाले और जुगाड़ू प्रकृति के होते हैं । 
द्वितीय भाव- मे  योग होने से जातक का घर- परिवार से जुड़ाव अधिक होता है और धन मे उतार- चढ़ाव रहता  है। 
तृतीय भाव- में यह योग बनने से  जातक हाजिर जवाबी होता हैं और  मीडिया मे अच्छा कार्य करता है।
चतुर्थ भाव - मे  यह योग होने से माता  को  स्वास्थ संबंधित परेशानियाँ रहेंगी परंतु धन  आता रहेगा। 
पंचम भाव- मे यह योग होने से जातक नये - नये हुनर सीखता है  परंतु संतान के लिए अशुभ है। 
 सस्ठम भाव - मे यह योग होने पर समस्या लंबे समय तक नहीं रहती। 
सप्तम भाव - मे  यह योग होने से कारोबार मे उन्नति होती है परंतु वैवाहिक जीवन मे बहुत समस्या आती है। 
अस्टम भाव - मे  यह योग जातक   के जीवन में उतार चढ़ाव लाता है। 
नवम भाव - मे यह योग पिता और दादा के लिए अशुभ होता है। 
दसम् भाव -मे इस योग मे उत्पन्न जातक आलसी  होते हैं बार-बार कार्य बदलते रहते है । 
एकादश भाव -मे  यह योग अच्छा परिणाम देता है ,इच्छा बढ़ती रहती है। 
द्वादश भाव - मे  यह योग होने से विदेश से संबंधित कार्य करना चाहिए या विदेश मे रहने के योग बनते हैं। 
उपाय   - गुरु के मंत्रो का जाप करें। 
पिता और गुरुजनों की सेवा करें और उनकी आज्ञा का पालन करें। 
जौ को जल में परवाहित् करें।
शरीर मे स्वर्ण धारण करें।
धार्मिक कार्य करें। 



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